अहंकार से कोरोना को हरा नहीं सकते, जाने क्या है कोरोना का अंतिम उपाय  


संसार के सभी धर्मों का सार एक ही है. हर मजहब में सत्‍य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, भाईचारा, सहनशीलता, सदाचार, अध्यात्म आदि पर जोर दिया गया हैयह उचित समय है कि इस धर्म ज्ञान का प्रकाश सबके अंतर्मन में फिर से प्रज्वलित हो सके. .

क्या किसी ने कभी सोचा था कि लगभग संपूर्ण मानव जाति को अपना जीवन एक अनजानी महामारी से सुरक्षित करने के लिए इस तरह से घरों में बंद रहने को मजबूर होना पड़ेगा?

सायद किसी ने भी इसकी कल्पना नहीं की होगी. दूर दूर तक चारो ओर  रोंगटे खड़े करने वाला सन्नाटा पसरा हुआ है. यैसा लगता है मानो ऊपर वाले ने इस गतिशील जगत को जानबूझकर रोक कर सबको कैद कर दिया है. इस महामारी से लगभग पूरा संसार पीड़ित हैं जो आज तक पहले कभी नहीं हुआ. हर तरफ त्राहि-त्राहि माम वाली स्थिति बन चुकी है. सोशल डिस्टैन्सिंग के रूप में पुराने ज़माने में उत्पन छुआ -छूत आज मानव को इस घातक बीमारी को रोकने का एकमात्र मन्त्र है।  

हो सकता है हजारो साल पहले इसी तरह की कोई महामारी के रोक -थाम के लिए किसी विशेष परिवार , समुदाय को समाज से अलग कर दिया गया हो जो बाद में  छुआ -छूत  की बुरी प्रथा बन गयी हो. 

लेकिन दूर दर्शन पर आज कल फिर से प्रसारित रामायण धारावाहिक  में हम देख ही चुके है कि छुआ-छूत जैसी कोई कुप्रथा को त्रेता युग ने बढ़ावा नहीं दिया गया और सभी जाती के बच्चे एक ही गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करते थे और बहुत अच्छे मित्र भी थे. 

 खैर, सोचने वाली बात यह है कि क्या यह कोविड-19 अभूतपूर्व घटना ईश्वर के मानव समाज पर कुपित होने का संकेत है या प्रत्यक्ष प्रमाण है. हम सब मिलकर यैसा क्या अक्षम्य पाप कर्म कर रहे है जिसके कारण हम इस दयनीय स्थिति में लुढ़क गए हैं. क्या भौतिक सुखो के प्रति हमारी अमार्यादित आसक्ति और  आसमान छूते हुये अहंकार ने हमारी आत्मा को अज्ञान के अंधकार में धकेल दिया है?.

अगर यह हम सब के सामूहिक अनअपेक्षित अमानवीय  कर्मो के परिणाम स्वरुप दैवीय प्रकोप है  तो अहंकार से हम कोरोना को हरा नहीं सकते है।  जब चीन में यह विमारी फ़ैल रही थी तो गैर चीनियों को लगा की उनको यह बीमारी नहीं होगी।  सोशल मीडिया पर इसका काफी मजाक -सजाक भी हुआ जो उचित नहीं था.

इस गैर जिम्मेदार व्यवहार  के बीच देखते-ही -देखते दुनिया के लगभग सभी मुल्क  आसानी से इसके चपेट में आ गए. दुनियाभर में अबतक सवा लाख लोग इस महामारी से अपनी जान गवा चुके है और अठारह लाख से ज्यादा संक्रमित है।

भारत में भी 21 दिन लम्बे  लॉक डाउन के बाबजूद कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 10 हजार होने को है जिसमे से दुर्भाग्यवश 300 से ज्यादा इस दुनिया में नहीं रहे. अब देश में लॉक डाउन और बढ़ना तय है । ऐसा लगता है यह एक दैवीय प्रकोप है जो  हम सब अहंकारियों की हेकड़ी निकाल के ही दम लेगा।

उपाय क्या है?

महाभारत युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य के धोखे से मारे जाने पर अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हो गये थे । उन्होंने पांडव सेना पर एक बहुत ही भयानक अस्त्र "नारायण अस्त्र" छोड़ दिया। इस महान अस्त्र का कोई भी प्रतिकार नहीं कर सकता था।यह जिन लोगों के हाथ में हथियार हो और लड़ने के लिए कोशिश करता दिखे उस पर अग्नि बरसाता था और तुरंत नष्ट कर देता था।

भगवान श्रीकृष्ण जी ने सेना को अपने अपने अस्त्र शस्त्र  छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर खड़े रहने का आदेश दिया। और कहा मन में युद्ध करने का विचार भी न लाएं, यह उन्हें भी पहचान कर नष्ट कर देता है।

नारायण अस्त्र धीरे धीरे  अपना समय समाप्त होने पर शांत हो गया।इस तरह पांडव सेना की रक्षा हो गयी।

इस कथा प्रसंग का औचित्य समझें?

हर जगह अहंकार पोषित लड़ाई सफल नहीं होती। प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए हमें भी कुछ समय के लिए  चुपचाप हाथ जोड़कर, मन में सुविचार रख कर प्रभु से क्षमा याचना करनी चाहिए और अहंकार का त्याग कर मर्यादित आचरण  व सदमार्ग अपनाना चाहिये जिससे प्रकृति का वातावरण स्वच्छ रहे और ईश्वर का आशीर्वाद सदा हमें मिलता रहे । तभी सायद हम इसके कहर से बच सकते है और यह कोरोना भी अपनी समयावधि पूरी करके शांत हो जाएगा। मेरा विश्वास है श्रीस्टी के स्वामी  परम परमेश्वर  नारायण अवतार  श्रीकृष्ण जी का बताया हुआ उपाय है, यह व्यर्थ नहीं जा सकता। 

शास्त्रों के अनुसार भगवान परशुराम जी ने भी अंहकारी क्षत्रिओं का  21 बार  समूल नाश किया  था और क्षत्रियों को अस्त्र -शत्र की शिक्षा देना बंद कर दी थी।  सूरवीर कर्ण ने जब ब्राह्मण वेश धारण कर शिक्षा ली तो  परशुराम जी ने उन्हें भी श्राप दे दिया था. क्योंकि ज्यादातर क्षत्रिय अंहकारवश अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए कमजोरो पर जोर आजमाईश,   हिंसा और युद्ध के लिए लालयित रहते थे.

मर्यादा पुर्षोत्तम भगवान श्री राम ने भी कभी अपनी शक्ति पर अभिमान नहीं किया और अहंकारियों का सहज ही दमन किया।  उन्होंने अपने मित्र गण. सम्बन्धियों  व् मंत्रियो को भी अहंकार का त्याग कर मर्यादित आचरण करने व् वेद-शास्त्रों में वर्णित नीति को अपनाने की प्रेरणा प्रदान दी थी .  सायद सम्पूर्ण मानव समाज या एक वैश्विक समाज का एक बड़ा बर्ग जीवन की आप-धापी में सदमार्ग से भटक गया है। संसार के सभी धर्मों का सार एक ही है. हर मजहब में सत्‍य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, भाईचारा, सहनशीलता, सदाचार, अध्यात्म आदि पर जोर दिया गया हैयह उचित समय है कि इस धर्म ज्ञान का प्रकाश सबके अंतर्मन में फिर से प्रज्वलित हो सके. .

अहंकार से क्या उत्पन होता  है  ?

अनगिनत पापों को जन्म देने वाला यह अहंकार आत्म प्रशंसा के बीज से उत्पन्न होता है। खुद को सर्वोच्च मान लेने का भाव इसी से ही पैदा होता है। दूसरों पर हावी रहने की प्रवृत्ति इसी से ही पैदा होती है। न जाने कितने प्रकार के मानसिक रोग अहंकार के कारण ही पैदा होते हैं। हम जाने-अनजाने अनेक पाप अहंकार के कारण करते हैं। अहंकार न जाने कितने रूपों में आकर हमें भ्रमित करता रहता है और हमें अपने लक्ष्य से भटकाता है। 
अहंकार असल में एक मृगतृष्णा के समान होता है, जिसमें न तो खुद की प्यास बुझती है और न ही दूसरों की। अपने को हर क्षेत्र में पूर्ण मान लेने की भूल कराने वाला अहम हमेशा कमियों को छिपाने का कार्य करता है। व्यक्ति अपनी कमियों और दोषों को जानते हुए भी अहंकारवश दूसरों के सामने स्वीकार नहीं करता। वह हमेशा परनिंदा में ही लगा रहता है। ऐसी स्थिति में निंदा रस उसके जीवन का स्वादिष्टतम रस होता है। 

घृणा, द्वेष, क्रोध, प्रतिशोध जैसे घातक मानस रोग उसे जीवन भर परेशान करते रहते हैं। मानस रोगों का नाश करने वाली औषधियों, जैसे कि क्षमा, दया, करुणा, प्रेम, धैर्य, नम्रता, सादगी से वह हमेशा वंचित ही बना रहता है। 

अहम के वशीभूत होकर व्यक्ति इन औषधियों का सेवन नहीं कर पाता, जिससे मानसिक रोग समाप्त होने की बजाय बढ़ते ही जाते हैं। अहंकार के पेड़ पर सिर्फ विनाश के फल ही उगते है। 

क्या अहंकार पर काबू पाया जा सकता है?
अपने पापों और गलतियों को हम हृदय से स्वीकार करते जाएं, तो आगे हम इनकी पुनरावृत्ति से बच सकते हैं। गलतियों को दिल से स्वीकार करने वाला क्षमा मांगकर पापों और अपराधों से बच जाता है। क्षमा मांगने वाला और क्षमा करने वाला, दोनों ही तमाम प्रकार के मानसिक असंतोष से बचकर शांति और आनंद का अनुभव करते हैं। 

इस प्रकार हमारी विनम्रता तभी सुशोभित होती है, जब वह क्षमा का आभूषण पहन लेती है। अहंकार का नाश होने पर ही विनम्रता की भावना पैदा होने लगती है। अंदर की असीम, अक्षय शक्ति को जागृत करने वाली विनम्रता हृदय में ज्ञान की ज्योति जलाया करती है। ज्ञान ज्योति जलने से अंतरतम के अंधकार में रहने वाले सभी मानसिक रोग भाग जाते हैं। 

विनम्रता हमारे हृदय में प्रार्थना और भक्ति का द्वार खोलती है। भक्ति हमें तामसिक खान -पान ,विचार व् आचरण से दूर रखती है। भक्ति के जरिए हम प्रायश्चित करके हृदय को पवित्र कर सकते हैं। मन से उत्पन्न होने वाली अतृप्त कामनाओं का नाश भक्ति से ही होता है। सभी पापों का नाश करने वाली भक्ति हमारे अंदर ईश्वर के विराट रूप का दर्शन करवाती है। 

जब हम विनम्रता की थाली में, क्षमा की आरती, प्रेम का घृत, दृढ़ विश्वास का नैवैद्य भगवान को समर्पित करते हैं, तब प्रायश्चित की आरती जलने पर इसकी लौ में 'मैं' रूपी अहंकार का राक्षस जलकर भस्म हो जाता है।  

हरि ॐ। नमोः नारायण। 
प्रभु को प्रसन्न करने की लिए छोटी सी प्रार्थना 


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